ख़ौफ का आलम मेरे अंदर बचपन से ही था,इसकी बुनियाद वक़्त के साथ मजबूत होती गयी । यूँ तो मै भूत प्रेतो से न डरने की बाते न जाने कितनो से किया करती थी, तो पलों ने वक़्त के साथ मेरे उन गढ़ी बातों का जायजा लेना शुरू कर दिया ।
गर्मियों की छुट्टियों की शुरुआत हो चुकी थी । हर साल की तरह मैं अपने गाँव माँ पापा और भाई-बहनों के साथ गयी । जब गाव की भूमि पर कदम रखा तो उस भूमि की कोमलता और खिलखिलाती हवा मेरे चेहरे पर पड़ी । दिन की शुरुआत परिजनों से दुआओ के साथ हुई । मेलमिलाप का समय खत्म हुआ तो बीते वर्ष की बात याद आ गयी ।
वो अलसाई रात ,जब पडोश की नीमा चाची हाँफते हुए आई और कहा -"वर्षा पर प्रेत आया है चलो !चलो ! जल्दी चलो "। ये सुनते ही मेरे अंदर खलबली मच गयी । दादी,पापा और चाचा वर्षा को देखने गए । मै भले ही ये दिखाने की कोशिश कर रही थी कि ख़ौफ़ नही इन सब से ,लेकिन मेरे माथे पर सिकन ने दस्तक दे दी थी ।
कहते है "किसी बात को जानने की जिज्ञासा जब हो जाए ,तो मार्ग में आने वाली मुश्किलें अपने आप दूर हो जाती है ।"मैं भी जानने को बहुत उत्सुक थी ,कि वर्षा अब कैसे हैं ?
यूँ तो भूत प्रेतो से कभी मुखातिब नही हुई,लेकिन उस दिन ख़ौफ का मंज़र साँतवे आसमान पर था । अचानक उन ख्वाबो से बाहर आई । रात्रि हो चुकी थी ,वो टिमटिमाते जुगनु अंधरे को हटाने की ज़ी तोड़ कोशिश कर रहे थे। रात्रि भोज के बाद पूरा परिवार का एकजुट होकर गप्पे लगाने बैठ गया । बातचीत का दौर ख़त्म तो सभी अपने-अपने कमरे में चले गए।
उस रात्रि का अनुभव भूले नही भूलती । आज रात्रि में शीतलता भरी थी । मुझे नींद नही आ रही थी । अचानक रोने की आवाज मेरे कानो में पड़ी । ऐसा प्रतीत हुआ जैसे इस शांत वातावरण की शान्ति को भंग करने कोई आ गया हो । रोने की आवाज बार-बार मेरे कानों में पड़ी । मैं थोड़े देर के लिए सहम गयी। पसीनो का आगमन मेरे चेहरे पर हो चुका था । परेशानी शिकन पर आ गयी ।
बीते वर्ष का वो अफ़साना मेरे चारो तरफ घूम रहा था । फिर मुझे माँ की बात याद आ गयी। "अपने डर से जितना डरोगे ,वो डर भी तुम्हे उतना ही डराएगा।" इस ख़ौफ़ को अपरिचित मान मैंने दरवाजा खोला तो पाया आँगन में बैठा कुत्ता ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था। मैंने राहत की सांस ली और सोने चली गई ।